भाजपा का आरोप है कि आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार शुरू से नगर निगमों को आर्थिक रूप से पंगु बनाने की लगातार कोशिश कर रही है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने कहा कि कोरोना काल में भी सरकार का निगमों के साथ भेदभाव जारी है। पिछले सात सालों में दिल्ली सरकार का बजट 37450 करोड़ रुपये से बढ़कर 69 हजार करोड़ रुपये हो गया। इसके विपरीत निगमों के बजट में कमी की जा रही है। दिल्ली सरकार ने पिछले वर्ष निगम के लिए 6828 करोड़ रुपये का प्रविधान किया था। इस सिर्फ 6172 करोड़ रुपये दिए गए हैं। इस तरह से एक वर्ष में 656 करोड़ रुपये कर कर दिए गए।
प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा कि तीसरे दिल्ली वित्त आयोग के अनुसार दिल्ली सरकार कुल कर संग्रह का 16.50 फीसद हिस्सा निगम को दे रही थी अब इसे घटाकर 12.50 फीसद कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में निगमों के 111 डाॅक्टर, स्वास्थ्य कर्मचारी, शिक्षक व सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई है। सरकार इन्हें कोरोना योद्धा मानने से इन्कार कर रही है। इनके स्वजनों को मुआवजा नहीं दिया जा रहा है। फंड की कमी से कर्मचारियों को वेतन देने में भी दिक्कत हो रही है।
दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने कहा कि दिल्ली सरकार को दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार नगर निगमों को फंड देना होता है जिसकी उपेक्षा की जा रही है। निगमों के आठ में से छह अस्पताल कोरोना मरीजों के लिए समर्पित किया गया। यदि निगमों द्वारा तैयार किए गए कोरोना केयर सेंटर को समय पर सरकार अनुमति देती तो कई लोगों की जान बच सकती थी। दो सौ टीकाकरण केंद्र बनाए गए थे जिसे दिल्ली सरकार ने बंद कर दिए।
नई दिल्ली की सांसद मीनाक्षी लेखी ने कहा कि कुछ वर्ष पूर्व तक नगर निगम से वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगों एवं विधवाओं को पेंशन मिलती थी। लगभग दो लाख लोगों को इससे सहारा मिलता था। अरविंद केजरीवाल ने सत्ता संभालने के कुछ समय बाद ही निगम द्वारा पेंशन वितरण पर रोक लगा दी। सरकार ने इन असहाय लोगों को कोई वैकल्पिक सहयता भी नहीं दी जिससे कोरोना काल में उनकी परेशानी बढ़ गई है।
वहीं, भाजपा नेता इंटरनेट मीडिया पर निगमों के साथ भेदभाव का मुद्दा उठा रहे हैं। पश्चिमी दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा ने कहा कि अदालत से फटकार लगने के बावजूजद दिल्ली सरकार निगमों को 13 हजार करोड़ रुपये बकाया नहीं दे रही है।